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Words from the dungeon
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Sunday, April 29, 2012
अब !!
रेशम सी रूह लेकर आग़ाज़
किया था मंजिलों की कूच का,
बदलती राहों में कुछ कीड़े
उठा लिए मगर,
ऐसा छलनी किया कमबख्तों ने की,
हमेशा से चाहे हुए एहसास भी,
आर पार निकल जातें है अब !!
Friday, January 14, 2011
अनछुआ स्पर्श
कल रात किवाड़ पर कुछ हरकत सुनी थी,
सोच के सो गया की शायद तुम वापस आ गयी,
सुबह तुम्हारी खुशबू बहुत ढूंढी,
पर कुछ रुक्खों के सिवा कुछ मिला ही नहीं !
अचानक वोह समय याद आया जब जाने के बाद,
तुम्हारी याद चली आती थी साथ निभाने के लिए,
जुर्रत तो देखिये, अब मुझे खड़ा देख,
वोह भी रस्ते बदल लेती है !
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