Friday, January 14, 2011

अनछुआ स्पर्श

 कल रात किवाड़ पर कुछ हरकत सुनी थी,
 सोच के सो गया की शायद तुम वापस आ गयी,
 सुबह तुम्हारी खुशबू बहुत ढूंढी,
 पर कुछ रुक्खों के सिवा कुछ मिला ही नहीं !

 अचानक वोह समय याद आया जब जाने के बाद,
 तुम्हारी याद चली आती थी साथ निभाने के लिए,
 जुर्रत तो देखिये, अब मुझे खड़ा देख,
 वोह भी रस्ते बदल लेती है !

   

Saturday, January 1, 2011

पप्पू मामा

एक बरगद की छाया में
  दिन गुज़रते थे कभी,
  टहनियों से लटक के झूल लेते थे,
  शाम की छाँव में पराठे और चाय तो
  रोज़ की ही आदत थी,

लिबास पे चिपकी धूल
  जिसकी झाड से साफ़ होती थी,
  और मोटरसाइकल की पहली नसीहत भी
  उसी के ही इर्द गिर्द थी,

ठिठुरते हाथों को अलाव की गर्मी
  जिसके नीचे ही मिल जाती,
  कोहरे की आड़ में धुआं भी
  उसी शाख के पीछे सुलग जाती थी,

तभी किसी ने साथ छुडवा कर
  शहर तबादला करवा दिया
  और पता चला की दीमकों को
  खबर लग गयी इस पेड़ की,

आते जाते समझता तो था
  की वो मुरझा रहा है,
  पर खोखलेपन के लिए
  कोई मीठी गोली न ढूँढ पाया,

आज उस घोसले तक पहुंचा
  जो झाड़ में ही छुपा था,
  पता चला लकड़ी गिरने से पहले ही
  चूजों ने उड़ना सीख लिया था !